ज़िंदा हूँ मगर ज़िन्दगी से दूर हूँ मैंआज क्यूँ इस क़दर मजबूर हूँ मैंबिना जुर्म के ही सज़ा मिलती है मुझेकिस से कहूँ की आख़िर बे-क़सूर हूँ मैंमेरी ख़ामोशिओं का सबब हैं ये ग़म मेरेफ़िर क्यूँ दुनिया समझती है की मग़रूर हूँ मैंआज फ़िर शिद्दत-ए-ग़म ने रुला दिया मुझेआज लगता है के ज़ख्मो से चूर हूँ मैं
- Unknown